आदिकाव्य रामायण से – 25, सुन्दरकाण्ड [स मैथिलीं धर्मपरामवस्थितां]
सीता न केवल रावण के मनोवैज्ञानिक प्रपञ्चों के पाश से पूर्णत: मुक्त रही अपितु वे रावण को प्रभावी ढंग से अपने मानस की दृढ़ता का परिचय भी देती रही। धन्य हैं उनके सतीत्व का ताप जो रावण के मानस को ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से निर्बल बनाने में सहायक हो रहा था।