नानक की बाबरवाणी

नानक की बाबरवाणी : द्वेष से खलासी असम्भव!

मुगलों के अत्याचार पर तुलसीदास ने भी लिखा – खेती न किसान को भिखारी को न भीख … किंतु उनका स्वर आक्रोश से भरे भक्त का है जिसमें लोक के प्रति करुणा ही करुणा है न कि नानक जैसे सूफी हिंसक आनन्द कि छाँई कि अच्छा हुआ जो ईश्वर ने इस प्रकार दण्डित किया।

गुरग्रन्थ में ‘मुक्ति’ हेतु ‘खलासी’ शब्द शताधिक बार दुहराया गया है किन्‍तु मूल के ही गड़बड़ होने के कारण खालिस्तानी द्वेष व मिथ्या श्रेष्ठताबोध के विष से ‘खलासी’ पायेंगे, इसमें शङ्का ही शङ्का है।

भारती संवत परम्परा से

भारती संवत : परम्परा से कुछ सूत्र

जब हम शीत अयनांत की निकटवर्ती प्रतिपदा या पूर्णिमा से वर्ष आरम्भ की बात करते हैं तो यह मान कर चलते हैं कि किसी मानदण्ड पर शीत अयनांत का दिन पहले से ही ज्ञात है। निश्चय ही वह मानदण्ड शुद्ध सौर गति आधारित होगा तथा उसका चंद्रगति से कुछ नहीं लेना देना होगा। उन व्रत, पर्व आदि से जुड़े दूसरे बिंदु हेतु यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है जोकि अति प्राचीनकाल से वर्षों वर्ष माने व  मनाये जाते रहे हैं।

ऐसा कोई मानदण्ड काम कैसे करता होगा? वर्नियर कैलिपर्स से समझते हैं।

सहज न समुझे कोय, तन्त्र के शिव-स्वरुप गुरु दत्तात्रेय आविर्भाव दिवस

सहज न समुझे कोय … क॒वयो॑ मनी॒षा

आज मार्गशीर्ष की पूर्णिमा है न? आज तन्त्र के शिव-स्वरुप गुरु दत्तात्रेय का आविर्भाव-दिवस है। और मेरा मन अखिल राष्ट्र को, तन्त्र की आदि-योनि स्वरूपा त्रिकोणाकृति इस भारत-भू की समस्त सनातन भारती-प्रजा को, भगवान् श्री दत्तात्रेय जयन्ती की अनन्त-अशेष हार्दिक शुभकामनायें देते हुए यह प्रार्थना कर रहा है –
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः। भवे भवे नातिभवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः ॥
मैं सद्योजात की शरण हूँ, सद्योजात को नमस्कार है, जन्म-जन्मान्तरों के किसी भी जन्म में मेरा अतिभव – पराभव न हो! हे भवोद्भव! आपको मेरा नमस्कार है।

अमरकोश : कुछ प्रचलित शब्द : लघु दीप

Amarkosha अमरकोश, कुछ प्रचलित शब्द : लघु दीप – ३४

पहुना, पाहुन (भोजपुरी, मैथिली आदि), संस्कृत में प्राघुणक।
प्राघूर्णिक: प्राघुणकश्च। – अभ्यागत हेतु।
अमरकोश से निकलते, कुछ प्रचलित शब्द आज के लघु दीप में।

भारती सम्वत प्रस्ताव - गिरिजेश राव - vernalequinox-e

भारती संवत : प्रस्तावना (शीत अयनान्त एवं गुरु-शनि युति एक साथ)

भारती संवत – जब कि भारतीय परम्परा में शीत अयनांत के साथ नववर्ष आरम्भ के दृढ़ प्रमाण हों, नयी संवत्सर पद्धति आरम्भ करने का सबसे उत्तम अवसर है। मासानां मार्गशीर्षोऽहम्‌ (श्रीकृष्ण, भगवद्गीता, १०.३५)। कल अग्रहायण या मार्गशीर्ष मास की शुक्ल प्रतिपदा है, अमान्त पद्धति से मार्गशीर्ष मास का आरम्भ। इस दिन से मैं एक नये ‘भारती संवत’ का प्रस्ताव करता हूँ। अब्द, संवत, वर्ष, era, epoch आदि नामों के अर्थों की मीमांसा में न जाते हुये कहूँगा कि जैसे विक्रमाब्द, शालिवाहन शकाब्द आदि विविध संवत्‌ प्रचलित हैं, ऐसे ही यह नया संवत होगा।

Panchatantra पंचतंत्र (पञ्चतन्‍त्र)

Panchatantra पंचतंत्र (पञ्चतन्‍त्र) – चटकी का प्रतिशोध : लघु दीप – ३३

panchatantra-पंचतंत्र-पञ्चतन्‍त्र – ह से हिंदू के अतिरिक्त जब उसे शासन तंत्र से भी समझते हैं तो वर्तमान जाने कितने अर्थ ले लेता है! रोहिंग्या, बांग्लादेशी, डफली गैंग, नागर नक्सल, जमाती, जिहादी, soul harvesters आदि अनादि जाने कितने चटकी-वीणारव-मेघनाद-काष्ठकूट समूह हैं और हाथी … ह से हाथी, ह से हिंदू के अतिरिक्त जब उसे शासन तंत्र से भी समझते हैं तो वर्तमान जाने कितने अर्थ ले लेता है! दुबारा से कथा पढ़ विचारें तो!

सच्चा पातशाह Git Govind

सच्चा पातशाह शुद्ध क्षत्रिय राजा, राज करेगा खालसा : शब्द – ८

सच्चा पातशाह – धरा के राजे झूठे हुये, विष्णु अवतार की परम्परा में गुरु ही ‘सच्चा राजा’ हो गया। प्रजा को ‘क्षत’ से बचाने वाला राजा। सच्चा पातशाह का अर्थ हुआ वह जो वास्तव में प्रजा का रक्षण करने वाला सर्वोच्च स्वामी राजा है। इसमें कोई बहुत बड़ा दार्शनिक आध्यात्म नहीं है वरन तत्कालीन परिस्थितियों में जनमानस को एक ऐसा व्यावहारिक मार्ग बताना है जो उन्हें अत्याचारी आक्रांताओं द्वारा दिये दु:खों से पार पाने व संघर्ष करने की शक्ति दे सकते। ‘राज करेगा खालसा’ का अर्थ समझ में आया? खालसा तो जानते ही हैं कि पारसी ‘खालिस’ से है – शुद्ध।

पुरा नवं भवति

पुरा नवं भवति

भारत में इतिहास को काव्य के माध्यम से जीवित रखा गया। स्वाभाविक ही है कि ऐसे में कवि कल्पनायें नर्तन करेंगी ही। कल्पना जनित पूर्ति दो प्रकार की होती है, एक वह जो तथ्य को बिना छेड़े शृङ्गार करती है, दूसरी वह जो तथ्य को भी परिस्थिति की माँग के अनुसार परिवर्तित कर देती है। दूसरी प्रवृत्ति की उदाहरण रामायण एवं महाभारत, दो आख्यानक इतिहासों, पर आधारित शताधिक रचनायें हैं जिनमें पुराण भी हैं। आख्यान का अर्थ समझ लेंगे तो बात स्पष्ट होगी। आख्यान आँखों देखी रचना होते हैं।

मूल में भी क्षेपक जोड़े गये जिनका अभिज्ञान कठिन है किन्तु असम्भव नहीं।

Twenty Lakh Crore बीस लाख करोड़, मनु, कौटल्य, रामायण व महापद्मनन्द

Twenty Lakh Crore बीस लाख करोड़, मनु, कौटल्य, रामायण व महापद्मनन्द

मगध के नन्द वंश का एक राजा महापद्म क्यों कहा जाता था? क्योंकि उसके राजकोश में उतनी स्वर्णमुद्रायें थीं किन्तु उनका उपयोग जनहित हेतु न होने से असन्तोष की स्थिति थी जिसका दोहन कर कौटल्य ने नन्दवंश के स्थान पर चन्द्रगुप्त हो आसीन किया। चाणक्य नीति एवं कौटल्य के अर्थशास्त्र से आरम्भ कर रामायण तक जाने एवं पुन: कौटल्य तक लौटने का उद्देश्य यह है कि आप अपने शास्त्र आदि पढ़ें जिससे परम्परा की निरंतरता का ज्ञान हो।

Striated Babbler बड़ा चिलचिल। चित्र सर्वाधिकार: आजाद सिंह, © Ajad Singh, सरयू आर्द्र भूमि, माझा, अयोध्या-224001, उत्तर प्रदेश, May 07, 2017

Striated Babbler बड़ा चिलचिल

बड़ा चिलचिल लगभग १० इंच का एक चञ्चल पक्षी है जो बड़ी-बड़ी घासों के बीच में ७ से १० के झुण्ड में दिखाई पड़ता है। इसके नर एवं मादा एक जैसे होते हैं। समभौमिक क्षेत्रों का पक्षी है जो पंजाब से लेकर गांगेय क्षेत्रों से होते हुए ब्रह्मपुत्र के क्षेत्र, नेपाल की आर्द्रभूमि, असम, बंगाल और ओडिशा के महानदी के नदीमुख क्षेत्र तक पाया जाता है।

Did Rama eat meat during his exile?

Did Rama eat meat during his exile?

Did Rama eat meat’ will be a long article in many parts as it will examine the whole Vālmīkīya Rāmāyaṇa (VR), not being speculative to the maximum extent possible, to find out what exactly comes out about the oft raised issue of meat eating in general and by Rāma during exile in particular. The article will be a ‘dynamic one’ as I’ll be revising and refining it basis new and relevant findings in other sources and new insights. Meat here should be taken as ‘cooked animal flesh’ taken as diet.

Andropogon muricatus usira उशीर Vetiver खस और बुद्ध : लघु दीप - ३१

Andropogon muricatus usira उशीर Vetiver खस और बुद्ध : लघु दीप – ३१

Andropogon muricatus usira उशीर ‍~ तुम्हारे कल्याण के लिये कहता हूँ – जैसे खस के लिये लोग उसीर को खोदते हैं, वैसे ही तुम तृष्णा की जड़ खोदो। नळ उस धरा पर बहुलता से होने वाला तृण है जिस पर कभी बुद्ध भ्रमण करते थे। उसकी जड़ें बहुत दूर तक पहुँचती हैं। अगले अङ्क में भी तो कुछ जानना है न?

Arthashastra Punishes Malfeasant Judges अर्थशास्त्र व कदाचारी न्यायाधीश

Arthashastra Punishes Malfeasant Judges अर्थशास्त्र व कदाचारी न्यायाधीश

न्याय का नाश करने की स्थिति में दण्डित करने के विधान बड़े स्पष्ट एवं सरल थे, दुरूह स्थिति नहीं थी। अर्थशास्त्र में कौटल्य (वा विष्णुगुप्त चाणक्य) ने न्यायालय को ‘धर्मस्थीय’ कहा है अर्थात वह स्थान जहाँ ‘धर्म में स्थित’ जन रहते हों। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का घोष वाक्य है – यतो धर्मस्ततो जय:। महाभारत से लिया गया यह अंश उद्योग पर्व में प्रयुक्त हुआ है।

Bauhinia vahlii मालुवा चाम्बुली

Bauhinia vahlii Maluva चाम्बुली, मालू, Camel’s foot creeper और बुद्ध : लघु दीप – 30

Bauhinia vahlii Maluva चाम्बुली ~मेरी प्रेमिका मालुवा लता सी लिपटी। प्रमत्त होकर आचरण करने वाले मनुष्य की तृष्णा मालुवा लता की भाँति बढ़ती है। भारतीय वाङ्मय में अपने परिवेश, जन, अरण्य, पशु-पक्षियों व वनस्पतियों के प्रति अनुराग और जुड़ाव बहुत ही सहज रूप में दिखता है। अब उपेक्षा और अज्ञान इतने बढ़ चुके हैं कि आज के भारतीय जन को देख कर तो लगता ही नहीं कि यह वही धरा है, उसी के लोग हैं!

अधिकमास मलमास मलिम्लुच

अधिकमास पुरुषोत्तममास मलमास मलिम्लुच अधिमास संसर्प अंहस्पति अंहसस्पति

क्या होता है मलमास? पुरुषोत्तम नाम क्यों ? मलमास दो प्रकार का है – अधिकमास व क्षयमास। अधिकमास पुरुषोत्तममास मलमास मलिम्लुच – अधिमासव्रते प्रीत्या गृहाणार्घ्यं श्रिया सह ॥पुराणपुरुषेशान जगद्धातः सनातन। पुरुषोत्तमाय नम:।

प्रच्छन्न अनुच्छेद

प्रच्छन्न अनुच्छेद

लक्ष्मी-वाहन को लक्ष्मी के अतिरिक्त भी किसी अन्य लाभ की आकांक्षा हो सकती है यह जान कर शुक्राचार्य को आश्चर्य हुआ। उन्होंने उलूक से कहा,“हे पक्षिराज! उलूक-मंतव्य सामान्य जनों हेतु सदा स्पष्ट नहीं होते! आप अपना वांछित स्वयं कहें!”

अनाम प्रेमिका की अनाम (अफगानिस्तान से) भाद्रपद अमावस्या साहित्य संयुक्ताङ्क, २०७७ वि., वर्ष-५, अङ्क-८९, बुधवार

अनाम प्रेमिका की अनाम (अफगानिस्तान)

लिखा है मेरी देह पर, प्रीतम का नाम
धुल जायेगा, न करूँ स्नान

सब पहनेंगे स्वच्छ वस्त्र, कल उत्सव के दिन
पहनूँ मैं वे ही मैल कुचैल, प्रियतम के सब गन्ध