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चीनी विषाणु के काल में उपचार के अनेक उपाय किये जा रहे हैं। पारम्परिक वैद्यकी व ज्ञान भी प्रयोग में लाया जा रहा है। ऐसे में सहज ही आयुर्वेद पर ध्यान जाता है। आयुर्वेदिक उपचार पौधों पर अत्यधिक निर्भर है। आयुर्वेद के निघण्टु शास्त्र आदि तो नहीं, अमरकोश से देखते हैं कुछ पारिभाषिक शब्द, कुछ नाम व कुछ पर्याय। शब्दों के प्रचलित व रूढ़ हो चुके अर्थों से कुछ भिन्न हो सकते हैं।
वानस्पत्यः फलैः पुष्पात्तैरपुष्पाद्वनस्पतिः।
पुष्पाज्जातफलयुक्तवृक्षः – ऐसे पादप जो फूलने के पश्चात फलित होते हैं, यथा – आम, लीची, अनार आदि, वे वानस्पत्य कहे जाते हैं।
विनापुष्पं फलितवृक्षः – ऐसे पादप जो बिना फूले ही फल देते हैं, वनस्पति कहलाते हैं। यथा- गूलर।
ऋतु अनुसार ये दोनों वर्ग वर्षों वर्ष फल देते रहते हैं।
ओषध्यः फलपाकान्ताः।
फलपाकान्तसस्याः – फल कर पकने के पश्चात नष्ट हो जाने वाले पादप ओषधि नाम के समूह में आते हैं। यथा – जौ, धान, गेहूँ आदि।
वृक्षादीनां फलं सस्यं वृन्तं प्रसवबन्धनम् ।
वृक्षों के फल दो नामों से जाने जाते हैं – फल एवं सस्य। उनकी भेंटियाँ जिनसे वे डाल से जुड़े रहते हैं, वृन्त एवं प्रसवबन्धन नामों से जानी जाती हैं। कच्चा फल शलाटु कहलाता है।
बिल्वे शाण्डिल्यशैलूषौ मालूरश्रीफलावपि।
बेल के वृक्ष के ये नाम पर्याय हैं – बिल्व, शाण्डिल्य, शैलूष, मालूर एवं श्रीफल।
आम्रश्चूतो रसालोऽसौ सहकारोऽतिसौरभः।
आम के वृक्ष के ये नाम पर्याय हैं – आम्र, चूत, रसाल।
अतिसुगन्धाम्रवृक्षः. – जो अति सुगंधित फल देने वाला आम्रवृक्ष होता है, उसे सहकार कहा जाता है।
तिष्यफला त्वामलकी त्रिषु अमृता च वयस्था च ।
आँवले के ये नाम हैं – आमलकी, तिष्यफला, अमृता एवं वयस्था।
बिभीतकः नाक्षस्तुषः कर्षफलो भूतावासः कलिद्रुमः।
बहेड़े के ये नाम हैं – विभीतकी, अक्ष, तुष, कर्षफल, भूतावास एवं कलिद्रुम ।
अभया त्वव्यथा पथ्या कायस्था पूतनाऽमृता ।
हरीतकी हैमवती चेतकी श्रेयसी शिवा ॥
हर्रे या हरड़ के ये नाम हैं – अभया, अव्यथा, पथ्या, कायस्था, पूतना, अमृता, हरीतकी, हैमवती, चेतकी, श्रेयसी एवं शिवा।
अरिष्टः सर्वतोभद्रहिङ्गुनिर्यासमालकाः,
पिचुमर्दश्च निम्बेऽथ।
निम्ब या नीम के ये नाम हैं – अरिष्ट, सर्वतोभद्र, हिङ्गुनिर्यास, मालक एवं पिचुमन्द।
सहा कुमारी तरणि:।
घिक्वार, घिकुआर या घृतकुमारी (Aloe Vera) के नाम हैं – सहा, कुमारी एवं तरणि।
ओड्रपुष्पं जवापुष्पं ।
अड़हुल को ओड्रपुष्प एवं जवापुष्प या जवाकुसुम कहते हैं।
वत्सादनी छिन्नरुहा गुडूची तन्त्रिकाऽमृता,
जीवन्तिका सोमवल्ली विशल्या मधुपर्ण्यपि।
गिलोय गुड़च या डूची के नाम हैं – वत्सादनी, छिन्नरुहा, गुडूची, तन्त्रिका, अमृता, जीवन्तिका, सोमवल्ली, विशल्या एवं मधुपर्णी।
अवल्गुजः सोमराजी सुवल्लिः सोमवल्लिका।
कालमेषी कृष्णफली बाकुची पूतिफल्यपि॥
बाकुची या बकुची के ये नाम हैं – अवल्गुज, सोमराजी, सुवल्ली, सोमवल्लिका, कालमेषी, कृष्णफली एवं पूतिफली।
कृष्णोपकुल्या वैदेही मागधी चपला कणा।
उषणा पिप्पली शौण्डी कोला ॥
पीपरि के ये नाम हैं – कृष्णा, उपकुल्या, वैदेही, मागधी, चपला, कणा, उषणा, पिप्पली, शौण्डी एवं कोला ।
अथ वितुन्नकः,
झटाऽमलाऽज्झटा ताली शिवा तामलकीति च।
भूम्यामलकी, भुई आँवला या छोटे आँवले के ये नाम हैं – वितुन्नक, झटा, अमला, अज्झटा, ताली, शिवा, तामलकी।
अथाढकी,
काक्षी मृत्स्ना तुवरिका मृत्तालकसुराष्ट्रजे।
अरहर, रहर या तुवर के नाम – आढकी, तुवरिका, काक्षी, मृत्स्ना, तुवरिका, मृत्तालक एवं सुराष्ट्रज।
तपस्विनी जटामांसी जटिला लोमशा मिसी।
जटामसी के नाम हैं – तपस्विनी, जटा, मांसी, जटिला, लोमश एवं मिसी।
त्वक्पत्रमुत्कटं भृङ्गं त्वचं चोचं वराङ्गकम्
दालचीनी के ये नाम हैं – त्वक्पत्रम्, उत्कट, भृङ्ग, त्वच, चोच एवं वराङ्गक।
कर्चूरको द्राविडकः काल्पको वेधमुख्यकः।
कचूर के नाम हैं – कर्चूरक, द्राविडक, काल्पक एवं वेधमुख्यक।
ओषध्यो जातिमात्रे स्युरजातौ सर्वमौषधम्।
जातिमात्रविवक्षा – ओषधी शब्द जातिमात्र अर्थात् धान्य, यव, चना आदि के सामूहिक अर्थ में प्रयुक्त होता है।
जबकि औषध शब्द जाति से भिन्न रोगनिवारक रूप में प्रयुक्त रस, घृत, तैल, अर्क आदि के सामूहिक अर्थ में प्रयुक्त होता है।
केवल मात्राओं के अन्तर से ओषधी एवं औषध शब्दों के अर्थों में कितना अन्तर हो जाता है न! इस कारण से भी वर्तनी की शुद्धि पर अतिरिक्त रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो सकता है।