… मित्राणां क्रियते प्रियम्
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विष्णु शर्मा रचित पञ्चतन्त्र राजन्यों के प्रशिक्षण पर केन्द्रित है। कथायें कथाओं से गुम्फित हैं, एक से दूसरी की लड़ी निकलती है और इस क्रम में शिक्षा संदेश निस्सृत होते रहते हैं। इस ग्रंथ में एक विशेषता है कि पात्रों के चयन, उनके नामकरण और उनके कृत्यों में हास्यबोध विकसित रूप में मिलता है यथा मक्खी का नाम ‘वीणारव’ होना। इस ग्रंथ की दूसरी विशेषता पर लोगों का ध्यान अल्प गया है कि जो जनसामान्य हेतु साधारण सीखें लगती हैं, यदि उन्हें राजन्यों या शासकों पर लगाया जाय तो विशिष्ट अर्थ ले लेती हैं।
ऐसी ही एक कथा है चटकी (गौरैया) की जिसके अण्डे तमाल वृक्ष पर स्थित नीड़ में थे और धूप से त्रस्त एक हाथी के द्वारा वृक्ष तले विश्राम करते समय मन की रौ में अनजाने ही तोड़ दिये गये। चटकी ने हाथी से प्रतिशोध लिया।
रोती हुई चटकी का उसके मित्र कठफोड़वे ने प्रबोधन किया –
नष्टं मृतमतिक्रान्तं नानुशोचन्ति पण्डिता:।
पण्डितानाञ्च मूर्खाणां विशेषोऽयं यत: स्मृत: ॥
भगवद्गीता से प्रेरित इस सुभाषित का अर्थ यह है कि नष्ट, मृत एवं पलायितों पर बुद्धिमान शोक नहीं करते। मूर्खों एवं बुद्धिमानों में यही अंतर है।
प्रतिशोध से भरे को प्रबोध कहाँ? चटकी ने उत्तर दिया –
आपदियेनापकृतं येन च हसितं दशसु विषमासु।
अपकृत्य तयोरुभयो: पुनरपि जातं नरं मन्ये॥
भाव यह कि आपत्तिकाल में पड़े व्यक्ति को हानि पहुँचाने वाले एवं दु:खी का उपहास करने वाले को दण्डित करना कर्तव्य है।
चटकी की इस बात को मित्र हेतु एक प्रकार से उलाहना भी समझा जा सकता है कि मुझ दुखिया को उपदेश देना अपराध के समान है!
स सुहृद्व्यसने य:, सुहृद वही है जो संकट में सहायता करे, इस प्रकार कहते हुये कठफोड़वा अपनी मित्र ‘वीणारव’ मक्खी के पास गया और उन सबने मिल कर ‘मेघनाद’ मेढक को भी हाथी के विरुद्ध जोड़ लिया –
हितै: साधुसमाचरै: शास्त्रज्ञैर्मतिशालिभि:।
कथञ्चिन्न विकल्पन्ते विद्वद्भिश्चिन्तिता नया:॥
शुभचिन्तक, साधु, शास्त्रनिपुण तथा मतिमान जन द्वारा सोच समझ कर किये गये कार्यों में सफलता निश्चित होती है।
वीणारव ने हाथी के कान में मधुर सङ्गीत सुनाने लगा, मुग्ध हाथी आँखें मूँद रमने लगा, कठफोड़वे ने उसकी आँखें फोड़ दीं, त्रस्त हाथी जलाशय हेतु दौड़ा कि सम्भवत: जल में सिर डालने से पीड़ा का शमन हो, मेघनाद एक खाई किनारे टर्र टर्र कर रहा था, हाथी पानी समझ कर खाई में कूदने से मारा गया।
ऊपर से यह कथा एकता एवं युक्ति से बलवान शत्रु के नाश का संदेश देती है किंतु राजनीति के सन्दर्भ में गहरे अर्थ लिये हुये है। पात्र देखें –
- चटकी
- कठफोड़वा
- मक्खी
- मेढक
एक पारिस्थिकी है जिसमें मेढक और मक्खी जिन्हें शत्रुवत होना चाहिये, मक्खी मेढक का आहार है, मित्र हैं। चटकी व कठफोड़वा की मित्रता भी विचित्र है। सामान्यत: चटकी वन में न रह कर मानव बस्तियों के पास रहती है, तमाल वन प्रांतर का वृक्ष है।
आधुनिक भारतीय संदर्भ में इन्हें अब्राहमी मतावलम्बियों व कम्युनिस्टों की विचित्र मैत्री के रूप में देखें जो भारत रूपी वन में अपने समस्त आपसी भेद भुला एक दूसरे के हित में मैत्रीपूर्ण ढंग से रह रहे हैं। हाथी वही है जो आप समझ गये हैं। वन उसका सहज प्राकृतिक रमणक्षेत्र है किन्तु उसके भीतर ऐसे क्षेत्र बना लिये गये हैं जो उसके लिये निषिद्ध से हैं। कष्ट में होने पर भी उसका वहाँ जाना उसके लिये संकटदायी है। और तो और, छल प्रपञ्च के दाँव बीच उसके मरण की खाइयाँ भी हैं जिन पर नियंत्रण न होते हुये भी ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं कि हाथी स्वयं ही किसी खाई में कूद पड़े!
रही बात नीड़ और अण्डों की तो उन्हें तो वहाँ होना ही नहीं चाहिये था! तथाकथित निर्बलों का अतिक्रमण है जो संख्या बढ़ाने में लगे हुये हैं!! जो हाथी का प्राकृतिक निवास है, वहाँ हाथी की किसी सहज गतिविधि के कारण उनके अभियान में कोई बाधा आये तो हाथी का नाश करने में लग जाते हैं…
…रोहिंग्या, बांग्लादेशी, डफली गैंग, नागर नक्सल, जमाती, जिहादी, soul harvesters आदि अनादि जाने कितने चटकी-वीणारव-मेघनाद-काष्ठकूट समूह हैं और हाथी … ह से हाथी, ह से हिंदू के अतिरिक्त जब उसे शासन तंत्र से भी समझते हैं तो वर्तमान जाने कितने अर्थ ले लेता है! दुबारा से कथा पढ़ विचारें तो!