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१. दिग्गज एवं दिग्गजियाँ (आठ जोड़े)
हिंदी में किसी क्षेत्र के बहुधा यशस्वी व प्रभावी व्यक्तियों हेतु दिग्गज शब्द का प्रयोग होता है। पौराणिक मान्यता है कि दिक् अर्थात् दिशाओं को सँभालने हेतु प्रत्येक के भिन्न भिन्न दिग्गज हैं। लक्षणात्मक अर्थ में इस शब्द का प्रयोग गुरुतर दायित्व निभाने वाले उन व्यक्तियों हेतु रूढ़ हो गया जो क्षमतावान होते हैं। उदाहरण के लिये, राजा कृष्णदेवराय की राजसभा में आठ प्रतिभाशाली व्यक्ति थे जिन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता था।
अमरकोश वा नामलिङ्गानुशासन अनुसार आठ दिग्गजों व दिग्गजियों के नाम इस प्रकार हैं :
ऐरावतः पुण्डरीको वामनः कुमुदोऽञ्जन ।
पुष्पदन्त सार्वभौम सुप्रतीकश्च दिग्गजाः ॥
करिण्योऽभ्रमु-कपिला-पिङ्गलाऽनुपमाः क्रमात् ।
ताम्रकर्णी शुभ्रदन्ती चाङ्गना चाञ्जनावती ॥
पूर्व दिशा – ऐरावत – अभ्रमु ।
आग्नेय कोण – पुण्डरीक – कपिला ।
दक्षिण दिशा – वामन – पिङ्गला ।
नैरृत्य कोण – कुमुद – अनुपमा ।
पश्चिम दिशा – अञ्जन – ताम्रकर्णी ।
वायव्य कोण – पुष्पदन्त – शुभ्रदन्ती ।
उत्तर दिशा – सार्वभौम – अङ्गना ।
ईशान कोण – सुप्रतीक – अञ्जनावती ।
२. देह लक्षण :
भोजपुरी में देह के जन्मजात चिह्नों हेतु एक शब्द प्रयोग होता है – लच्छन। अमरसिंह उसके विविध नाम इस प्रकार गिनाते हैं –
कलङ्काङ्कौ लाञ्छनं च चिह्नं लक्ष्म च लक्षणम् ।
कलंक, अंक, लांछन, चिह्न, लक्ष्म व लक्षण।
अर्थात् लांछन लगाना केवल आरोप लगाने तक सीमित नहीं है। वस्तुत: यह रूढ़ अर्थ अभिधात्मक अर्थ देह के चिह्न से आ रहा है।
३. निन्दा :
लाञ्छन की बात आ ही गई तो निन्दा को देख लेते हैं। अमरसिंह निन्दा के ये पर्याय बताते हैं –
अवर्णाक्षेप निर्वाद परीवादापवादवत् ।
उपक्रोशो जुगुप्सा च कुत्सा निन्दा च गर्हणे ॥
अवर्ण, आक्षेप, निर्वाद, परीवाद(परिवाद), अपवाद, उपक्रोश, जुगुप्सा, कुत्सा, निन्दा व गर्हण।
४. प्रसाद प्रसीद प्रसीद :
बहुधा लोगों के नामों या उपनामों में ‘प्रसाद‘ का प्रयोग मिलता है, जैसे – रामप्रसाद। देवी स्तुति में ‘प्रसीद प्रसीद‘ सुने होंगे। ये शब्द प्रसन्नता के पर्याय हैं।
प्रसाद नाम रखने वाले माता-पिता संतान को सदैव प्रसन्न देखना चाहते हैं तथा देवी से प्रसन्नता की प्रार्थना तो होती ही है – प्रसादस्तु प्रसन्नता।
५. राजा का साला, राठौर(?) :
प्रभावशाली व्यक्तियों के अप्रभावी सम्बन्धियों तक पहुँच कर अपना काम निकालने का प्रयास करने या कोई काम निकालने हेतु मात्र प्रयास गिनाने हेतु किसी को भी धन दे आने हेतु भोजपुरी में एक कहावत चलती है – ‘तहसीलदार के मौसी‘ से मिले या उसे धन दे आये क्या!
किन्तु कभी ऐसे प्रावधान थे जिनमें राजा के सम्बंधियों को प्रभावशाली पद दिया जाता था।
राजश्यालस्तु राष्ट्रिय।
अमरसिंह जिस क्षेत्र के थे वहाँ राजा के साले को राष्ट्रिय (आज के राज्यपाल की भाँति) पद दिया जाता था, ऐसा न समझें कि राजा का साला अर्थात पूरे राष्ट्र का साला! कुछ भाष्यकारों के अनुसार राठौर वंश किसी राष्ट्रिय का ही है।
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